32 वर्षों बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस की कहानी इमाम के पौत्र की जुबानी

32 वर्षों बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस की कहानी इमाम के पौत्र की जुबानी

बाबरी मस्जिद विध्वंस की पृष्ठभूमि और वर्तमान परिदृश्य

1992 की 6 दिसंबर को साम्प्रदायिक तानाशाही के परिणामस्वरूप, अयोध्या की बाबरी मस्जिद को 'कार सेवकों' द्वारा ढहा दिया गया था। यह घटना भारतीय इतिहास की सबसे विवादास्पद घटनाओं में से एक मानी जाती है, जिसने हिन्दू-मुस्लिम संबंधों में गहरी खाई पैदा कर दी थी। इस घटना का असर न केवल तत्काल परिस्थितियों पर पड़ा, बल्कि इसके दीर्घकालिक परिणाम भी हुए, जो आज तक महसूस किए जाते हैं। वर्तमान में अयोध्या का माहौल शांत है, लेकिन इतिहास की यादें और घाव अब भी ताज़ा हैं।

इमाम के पौत्र की आपबीती

इमाम के पौत्र द्वारा बताई गई कहानी इस विध्वंस के दर्दनाक पहलुओं को सामने लाती है। विध्वंस के दिन न केवल उनके पूर्वजों की धरोहर नष्ट हो गई, बल्कि उनके परिवार के कई सदस्य भी हिंसा के शिकार हुए। उनके पिता की मृत्यु उसी दिन की दंगाई घटनाओं में हो गई थी, जिसका जिक्र करते हुए वे आज भी भावुक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि यह घटना उनके परिवार के लिए एक व्यक्तिगत त्रासदी थी और समाज के लिए एक बड़ी चेतावनी बनी।

विध्वंस के बाद की साम्प्रदायिक स्थिति

बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, अयोध्या और उसके आस-पास के इलाकों में भारी हिंसा और दंगे भड़क उठे थे। बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए और सम्पत्ति का भी व्यापक नुकसान हुआ। इस घटना के परिणामस्वरूप देश में साम्प्रदायिक माहौल भयावह हो गया था। इसके साथ ही यह धार्मिक उन्माद और कट्टरता की ओर एक स्पष्ट संकेत था, जिसने समाज को कई स्तरों पर विभाजित किया।

सुरक्षा के कड़े इंतजाम

2024 में राम लल्ला मंदिर के शिलान्यास समारोह के पश्चात, इस साल की बाबरी मस्जिद विध्वंस की वर्षगांठ अयोध्या में खासकर संवेदनशील रही। इस वर्ष ऐसा कोई अप्रिय वाकया न हो इसलिए सरकार ने सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजाम किए थे। ड्रोन से निगरानी, सुरक्षा बलों द्वारा फ्लैग मार्च जैसे उपाय किए गए, जिससे शांति बनी रहे।

न्याय की तलाश

हालांकि 2019 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने राम लल्ला के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसका समर्थन बाबरी मस्जिद के विध्वंस को अपराध घोषित करने के साथ ही किया गया था। लेकिन, इसे लेकर आज भी विवाद बना हुआ है क्योंकि विध्वंस के प्रसंग में कोई भी व्यक्ति दंडित नहीं किया गया। 2020 में लखनऊ की विशेष अदालत ने 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया, जिसने न्याय प्रणाली की नाकामी को उजागर किया।

डॉक्यूमेंट्री का महत्व

इमाम के पोते की कहानी से प्रेरित इस डॉक्यूमेंट्री का उद्देश्य न केवल घटनाओं को याद करना है, बल्कि उन मुद्दों को उजागर करना है जिन्हें अब तक सुलझाया नहीं गया है। जनमानस को इस चेतावनी के माध्यम से सावधान किया जा रहा है कि भूतकाल की भूलों से सीख लेना निहायत जरूरी है, ताकि भविष्य में इस तरह की त्रासदियाँ न हों।

अयोध्या में भाईचारे का संदेश

अयोध्या इस समय शांतिपूर्ण वातावरण का गवाह है, जहाँ हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय मिलकर भाईचारे का संदेश दे रहे हैं। इसके बावजूद, कुछ मुस्लिम समुदाय 'ब्लैक डे' के रूप में इस दिन को याद करते हैं, जो इस घटना के दीर्घकालिक कर्तव्य और भावनात्मक प्रभाव को दर्शाता है। इस संदेश की गूंज मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास और बाबरी पक्ष के समर्थक इकबाल अंसारी के बयानों में भी सुनाई देती है।

राजनीतिक परिदृश्य और भविष्य की अपेक्षाएँ

राजनीतिक रूप से, बाबरी मस्जिद विध्वंस के प्रकरण ने कई नेताओं—जैसे एल.के. आडवाणी और नरेंद्र मोदी—को अलग-अलग दिशाओं में प्रभावित किया है, जो सीधे तौर पर राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा रहे हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए, यह अपेक्षा की जाती है कि इतिहास की इन घटनाओं से प्रेरित होकर समाज अधिक समावेशी और न्यायसंगत भविष्य की ओर बढ़ेगा। यही इस डॉक्यूमेंट्री का और इस आर्टिकल का निहितार्थ भी है।

  • Pooja Joshi

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12 टिप्पणि

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    Navneet Raj

    दिसंबर 7, 2024 AT 09:26

    इमाम के पौत्र की कहानी सुनकर दिल टूट गया। ये सिर्फ एक इमारत का नुकसान नहीं, बल्कि एक परिवार की यादों का नष्ट होना है। आज भी जब मैं अयोध्या की तस्वीरें देखता हूँ, तो लगता है जैसे कोई अपने बचपन का घर खो दे।

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    Neel Shah

    दिसंबर 8, 2024 AT 08:47

    अरे यार!! ये सब तो बस राजनीति का खेल है!! जब तक लोगों के दिमाग में 'हिंदू-मुस्लिम' का बॉक्स है, तब तक ये त्रासदियाँ दोहराएंगी!! और हाँ, न्यायालय ने जो फैसला दिया, वो तो बस एक 'पॉलिटिकल एक्सपेडिएंट' था!!

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    shweta zingade

    दिसंबर 9, 2024 AT 21:46

    मैं तो इस डॉक्यूमेंट्री को देखने के लिए तैयार हूँ! ये बात बहुत जरूरी है कि हम अपने इतिहास को झुकाए बिना देखें। जब तक हम अपने घावों को स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक ठीक नहीं होगा। मैंने अपने दादा को भी इसी तरह रोते देखा है। ये सिर्फ इतिहास नहीं, ये ज़िंदगी है।

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    Anuja Kadam

    दिसंबर 11, 2024 AT 19:27

    ye docu dekha kya? kya ye sab sirf ek bhai chare ka message hai? maine toh bas ek line padhi aur soch liya ki yeh sab kuchh timepass hai. phir bhi, jyada kuchh nahi likha hai, toh koi problem nahi.

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    Pradeep Yellumahanti

    दिसंबर 12, 2024 AT 09:48

    अब तो बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक ब्रांड बन गया है। जिस तरह कोई ब्रांड के लिए लोगों को इमोशनली जोड़ता है, उसी तरह ये घटना भी राजनीति के लिए इस्तेमाल हो रही है। अब न्याय की बात करो तो न्याय के लिए कोई नहीं बचा।

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    Shalini Thakrar

    दिसंबर 14, 2024 AT 07:15

    इस घटना का गहरा अस्तित्व एक 'कल्टुरल ट्रमा' के रूप में है, जो समाज के इंटर-कल्चरल डायनेमिक्स में एक पार्टिकुलर फ्रेमवर्क बन गया है। जब एक समुदाय की स्मृति को दूसरे समुदाय के द्वारा रिप्रेस किया जाता है, तो ये एक 'हिस्टोरिकल अनजस्टिस' का उदाहरण है।

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    pk McVicker

    दिसंबर 14, 2024 AT 13:07

    फिर से ये कहानी। बस रुको। कोई दंड नहीं। कोई न्याय नहीं। बस बात बन गई।

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    Laura Balparamar

    दिसंबर 15, 2024 AT 03:56

    इमाम के पौत्र की बातों से मुझे लगा कि हम बस इतिहास को याद कर रहे हैं, लेकिन उसे समझ नहीं रहे। अगर हम असली शांति चाहते हैं, तो बस ड्रोन और फ्लैग मार्च से काम नहीं चलेगा। हमें एक दूसरे की दर्द को सुनना होगा।

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    Shivam Singh

    दिसंबर 16, 2024 AT 14:24

    dekha na ye sab? yeh sab toh bas ek aur bhai chare ka gana hai. maine ek dost ki taraf se suna tha ki uske dadaji ne 1992 mein ek masjid ke paas se ghar chhod diya tha. abhi bhi unki aankhein bhar aati hain jab ye baat hoti hai.

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    Piyush Raina

    दिसंबर 18, 2024 AT 13:06

    ये सब किसके लिए है? अगर हम इतिहास को समझना चाहते हैं, तो क्या हमारे पास उसकी सारी कहानियाँ हैं? क्या हमने कभी उन मुस्लिम परिवारों की कहानियाँ सुनी हैं जिनके घर बाबरी मस्जिद के आसपास थे? या फिर हम सिर्फ एक तरफ की आवाज़ सुनते हैं?

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    Srinath Mittapelli

    दिसंबर 19, 2024 AT 21:43

    मैं अयोध्या में रहता हूँ। हर दिन देखता हूँ कि हिंदू और मुस्लिम बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं। एक दूसरे के घर में खाना खाते हैं। लेकिन जब ये बातें टीवी पर आती हैं, तो लगता है जैसे ये जगह ही नहीं है। हम अपनी छोटी-छोटी शांति को बड़ी बड़ी राजनीतिक बातों में खो देते हैं। ये डॉक्यूमेंट्री सिर्फ याद दिलाने के लिए नहीं, बल्कि ये दिखाने के लिए है कि हम अभी भी एक साथ रह सकते हैं।

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    Vineet Tripathi

    दिसंबर 21, 2024 AT 02:30

    मैं तो सिर्फ ये कहना चाहता हूँ कि जब तक हम अपने दिमाग में 'हम' और 'उन' का फैसला नहीं कर लेंगे, तब तक ये गलतियाँ दोहराई जाएंगी। बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक गलती थी। लेकिन अब उसके बाद की हर चीज़ भी गलत नहीं हो सकती।

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