बाबरी मस्जिद विध्वंस की पृष्ठभूमि और वर्तमान परिदृश्य
1992 की 6 दिसंबर को साम्प्रदायिक तानाशाही के परिणामस्वरूप, अयोध्या की बाबरी मस्जिद को 'कार सेवकों' द्वारा ढहा दिया गया था। यह घटना भारतीय इतिहास की सबसे विवादास्पद घटनाओं में से एक मानी जाती है, जिसने हिन्दू-मुस्लिम संबंधों में गहरी खाई पैदा कर दी थी। इस घटना का असर न केवल तत्काल परिस्थितियों पर पड़ा, बल्कि इसके दीर्घकालिक परिणाम भी हुए, जो आज तक महसूस किए जाते हैं। वर्तमान में अयोध्या का माहौल शांत है, लेकिन इतिहास की यादें और घाव अब भी ताज़ा हैं।
इमाम के पौत्र की आपबीती
इमाम के पौत्र द्वारा बताई गई कहानी इस विध्वंस के दर्दनाक पहलुओं को सामने लाती है। विध्वंस के दिन न केवल उनके पूर्वजों की धरोहर नष्ट हो गई, बल्कि उनके परिवार के कई सदस्य भी हिंसा के शिकार हुए। उनके पिता की मृत्यु उसी दिन की दंगाई घटनाओं में हो गई थी, जिसका जिक्र करते हुए वे आज भी भावुक हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि यह घटना उनके परिवार के लिए एक व्यक्तिगत त्रासदी थी और समाज के लिए एक बड़ी चेतावनी बनी।
विध्वंस के बाद की साम्प्रदायिक स्थिति
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद, अयोध्या और उसके आस-पास के इलाकों में भारी हिंसा और दंगे भड़क उठे थे। बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए और सम्पत्ति का भी व्यापक नुकसान हुआ। इस घटना के परिणामस्वरूप देश में साम्प्रदायिक माहौल भयावह हो गया था। इसके साथ ही यह धार्मिक उन्माद और कट्टरता की ओर एक स्पष्ट संकेत था, जिसने समाज को कई स्तरों पर विभाजित किया।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
2024 में राम लल्ला मंदिर के शिलान्यास समारोह के पश्चात, इस साल की बाबरी मस्जिद विध्वंस की वर्षगांठ अयोध्या में खासकर संवेदनशील रही। इस वर्ष ऐसा कोई अप्रिय वाकया न हो इसलिए सरकार ने सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतजाम किए थे। ड्रोन से निगरानी, सुरक्षा बलों द्वारा फ्लैग मार्च जैसे उपाय किए गए, जिससे शांति बनी रहे।
न्याय की तलाश
हालांकि 2019 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने राम लल्ला के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसका समर्थन बाबरी मस्जिद के विध्वंस को अपराध घोषित करने के साथ ही किया गया था। लेकिन, इसे लेकर आज भी विवाद बना हुआ है क्योंकि विध्वंस के प्रसंग में कोई भी व्यक्ति दंडित नहीं किया गया। 2020 में लखनऊ की विशेष अदालत ने 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया, जिसने न्याय प्रणाली की नाकामी को उजागर किया।
डॉक्यूमेंट्री का महत्व
इमाम के पोते की कहानी से प्रेरित इस डॉक्यूमेंट्री का उद्देश्य न केवल घटनाओं को याद करना है, बल्कि उन मुद्दों को उजागर करना है जिन्हें अब तक सुलझाया नहीं गया है। जनमानस को इस चेतावनी के माध्यम से सावधान किया जा रहा है कि भूतकाल की भूलों से सीख लेना निहायत जरूरी है, ताकि भविष्य में इस तरह की त्रासदियाँ न हों।
अयोध्या में भाईचारे का संदेश
अयोध्या इस समय शांतिपूर्ण वातावरण का गवाह है, जहाँ हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय मिलकर भाईचारे का संदेश दे रहे हैं। इसके बावजूद, कुछ मुस्लिम समुदाय 'ब्लैक डे' के रूप में इस दिन को याद करते हैं, जो इस घटना के दीर्घकालिक कर्तव्य और भावनात्मक प्रभाव को दर्शाता है। इस संदेश की गूंज मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास और बाबरी पक्ष के समर्थक इकबाल अंसारी के बयानों में भी सुनाई देती है।
राजनीतिक परिदृश्य और भविष्य की अपेक्षाएँ
राजनीतिक रूप से, बाबरी मस्जिद विध्वंस के प्रकरण ने कई नेताओं—जैसे एल.के. आडवाणी और नरेंद्र मोदी—को अलग-अलग दिशाओं में प्रभावित किया है, जो सीधे तौर पर राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा रहे हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए, यह अपेक्षा की जाती है कि इतिहास की इन घटनाओं से प्रेरित होकर समाज अधिक समावेशी और न्यायसंगत भविष्य की ओर बढ़ेगा। यही इस डॉक्यूमेंट्री का और इस आर्टिकल का निहितार्थ भी है।
द्वारा लिखित सुमेधा चौहान
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