नेशनल कॉन्फ्रेंस और साझेदारों का राजनीतिक प्रयास
जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक फ़िज़ा में महत्वपूर्ण परिवर्तन आता दिख रहा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार संध्या को राज भवन श्रीनगर में लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा से मुलाकात की। इस दौरान अब्दुल्ला ने सरकार गठन के लिए अपना दावा प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि उनके पास नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआई (एम) और स्वतंत्र उम्मीदवारों के समर्थन पत्र हैं। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई जब जम्मू-कश्मीर में 2018 के बाद से पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे।
उपकरण और प्रक्रियाएँ: कठिनाइयां और संभावनाएँ
जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति के कारण सरकार गठन की प्रक्रिया में कई औपचारिकताएँ निभाए जाने की आवश्यकता है। उमर अब्दुल्ला ने इस बात पर जोर दिया कि शपथ ग्रहण समारोह को अंजाम देना एक जटिल प्रक्रिया है और इसमें समय लग सकता है। चूंकि जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है, इसलिए यहाँ एक अद्वितीय राजनीतिक परिदृश्य है जिसे समझने की आवश्यकता है। इस प्रकार की प्रक्रियाओं में दस्तावेज़ तैयार करना, उन्हें राष्ट्रपति भवन और गृह मंत्रालय भेजना और फिर यहाँ वापस आना भी शामिल होता है। अनुमान के अनुसार, यह प्रक्रिया दो से तीन दिनों का वक्त ले सकती है।
राजनीतिक तर्क-वितर्क और समर्थन की गणित
नेशनल कॉन्फ्रेंस और इंडियन नेशनल कांग्रेस के गठबंधन ने विधानसभा चुनावों में 48 सीटों पर कब्जा जमाया, जबकि भारतीय जनता पार्टी ने 29 सीटों पर, जिसमें 28 हिंदू और एक सिख सदस्य चुने गए। भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों को सफलता नहीं मिल पाई। इसे राजनीतिक समीकरण के रूप में देखा जा रहा है जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस की रणनीति और कांग्रेस का समर्थन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह गठबंधन 2018 के बाद जम्मू-कश्मीर में पहली लोकतांत्रिक सरकार बनने की दिशा में प्रमुख पहल है, जब भाजपा ने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से समर्थन वापस ले लिया था।
जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव
इन घटनाओं ने जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक स्थिरता के लिए नई राहें खोली हैं, विशेष रूप से अनुच्छेद 370 के निरस्त होने और क्षेत्र में सीटों के पुन: सौंपी जाने के बाद। इन घटनाओं ने क्षेत्र में राजनीतिक गतिशीलता बदल दी और नई चुनौतियों और अवसरों को पेश किया।
इस अनिश्चितता के बीच, नेशनल कॉन्फ्रेंस और उसके साझेदार दलों की यह पहल महत्वपूर्ण है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राजनीतिक प्रक्रियाएँ केवल तात्कालिक निर्णयों पर आधारित नहीं होतीं, बल्कि इसके पीछे कठिन परिश्रम और रणनीतिक सोच शामिल होती है। उमर अब्दुल्ला का दावा इस बात का संकेत है कि जम्मू-कश्मीर अब एक निर्णायक मोड़ पर है और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पुनरुद्धार होने जा रहा है।
चुनौतीपूर्ण राह और भविष्य की योजनाएँ
यह प्रक्रिया केवल सरकार गठन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने और लोगों के कल्याण के प्रति भी प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। नये राजनीतिक परिवर्तन से यह उम्मीद की जा सकती है कि जम्मू-कश्मीर का भविष्य अधिक स्थिर और समृद्ध होगा।
मौजूदा परिस्थिति में महत्वपूर्ण यह है कि राजनीतिक दल और उनके नेता गठबंधन बनाकर क्षेत्रों के विकास के लिए मिलकर काम करें। इस दौरान जनता की आशाओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कार्य करना होगा ताकि जम्मू-कश्मीर का आर्थिक और सामाजिक विकास सम्भव हो सके। यह भी ध्यान देने योग्य है कि ऐसी स्थिति में नेतृत्व क्षमता का परीक्षण होता है और सही मार्गदर्शन से ही स्थिरता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
द्वारा लिखित सुमेधा चौहान
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