अफ़ज़ल गुरु की फाँसी पर ओमर अब्दुल्ला की कठोर प्रतिक्रिया: ‘जम्मू और कश्मीर सरकार होती, तो मंजूरी नहीं देती’

अफ़ज़ल गुरु की फाँसी पर ओमर अब्दुल्ला की कठोर प्रतिक्रिया: ‘जम्मू और कश्मीर सरकार होती, तो मंजूरी नहीं देती’

पूर्व जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला ने अफ़ज़ल गुरु की फाँसी पर अपने विचार प्रकट किए हैं, जिसमें उन्होंने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया। 2013 में 2001 संसद हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु को फाँसी दी गई थी, और यह मामला तब से ही चर्चाओं में है। अब्दुल्ला ने एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में स्पष्ट किया कि अगर जम्मू और कश्मीर सरकार को इस प्रक्रिया में शामिल किया गया होता, तो वे फाँसी की मंजूरी नहीं देते।

ओमर अब्दुल्ला ने साफ़ तौर पर कहा कि राज्य सरकार की अनुमति इस मामले में महत्वपूर्ण होती, और वे इसे कभी भी नहीं देते। उनका कहना है कि न्याय प्रणाली हमेशा सही नहीं होती और मृत्युदंड के मामले में गलत फैसले का खतरा भी होता है। उनके अनुसार, दोषी ठहराए जाने के बावजूद न्यायालय की प्रक्रियाएं बार-बार निरीक्षण और सुधार की आवश्यकता होती है।

उन्होंने मृत्युदंड का भी विरोध किया, क्योंकि इसके साथ में न्यायिक प्रणाली की अचूकता का सवाल जुड़ा है। कई बार न्यायालय से गलत फैसले भी हो सकते हैं, जिससे निर्दोष व्यक्ति को फाँसी दी जा सकती है। यह एक गंभीर चिंता का विषय है जिसने दुनिया भर में मानवाधिकार संगठनों का ध्यान खींचा है।

अफ़ज़ल गुरु की फाँसी पर विवाद और चुनावी माहौल

अफ़ज़ल गुरु की फाँसी का मुद्दा जम्मू और कश्मीर के निवासी और राजनीतिक माहौल में एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। कइयों ने इसे अनुचित और अन्यायपूर्ण बताया, जबकि अन्य इसे एक न्यायिक निर्णय मानते हैं। इसने राज्य में कई तरह की प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं, जिनमें प्रबल विरोध और समर्थन दोनों शामिल हैं।

इस बयान के समय का भी विशेष महत्व है। अफ़ज़ल गुरु के भाई अजाज़ अहमद गुरु ने आगामी विधानसभा चुनावों में खड़े होने का निर्णय लिया है। यह चुनाव जम्मू और कश्मीर में तीन चरणों में होंगे, जिसकी शुरुआत 18 सितंबर से होगी और वोटों की गिनती 4 अक्टूबर को होगी।

सार्वजनिक प्रतिक्रिया और भविष्य की संभावनाएं

अब्दुल्ला के इस बयान ने सार्वजनिक क्षेत्र में कई प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। उनके समर्थक इस निर्णय की तारीफ कर रहे हैं, जबकि विरोधी इसे एक चुनावी रणनीति के रूप में देख रहे हैं। अन्य राजनीतिक दल भी इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं, जिससे चुनावी माहौल और भी गर्म हो गया है।

अब्दुल्ला का यह बयान जम्मू और कश्मीर की राजनीतिक घटनाओं में एक नई दिशा जोड़ता है। इससे न केवल आगामी चुनाव प्रभावित होंगे, बल्कि यह मुद्दा राज्य की राजनीति में लंबे समय तक चर्चा का विषय बना रहेगा।

अब्दुल्ला ने हिम्मत के साथ अपने विचार जाहिर किए हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बयान चुनावी परिणामों को कैसे प्रभावित करता है। उनके बयान ने एक बार फिर इस विवादास्पद मामले को राजनीतिक मंच पर ला खड़ा किया है, जिससे विभिन्न दलों के बीच जोरदार बहस और विचार-विमर्श की संभावना है।

  • Pooja Joshi

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20 टिप्पणि

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    Shivakumar Kumar

    सितंबर 7, 2024 AT 04:53

    अफ़ज़ल गुरु की फाँसी एक बहुत ही जटिल मामला है, और ओमर अब्दुल्ला का बयान असल में एक गहरी न्यायिक चेतना को दर्शाता है। जम्मू-कश्मीर की राजनीति में ऐसे बयानों की कमी है - जो सिर्फ़ वोट नहीं, बल्कि सच्चाई की ओर इशारा करते हों। मृत्युदंड एक अंतिम उपाय है, और जब न्याय की प्रक्रिया में राज्य की भागीदारी न हो, तो ये फैसला अकेले दिल्ली के कमरे में लिया गया लगता है। अगर हम अपने अधिकारों को भूल गए, तो अब ये सब बस एक राजनीतिक नाटक बन गया है।

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    saikiran bandari

    सितंबर 7, 2024 AT 17:50

    फाँसी ठीक है बस इतना ही

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    Rashmi Naik

    सितंबर 8, 2024 AT 11:31

    इस मामले में न्यायिक अधिकारिता का विवाद एक प्रोटो-कॉल ऑफ़ स्टेट सोवेरेंटी के रूप में उभरा है, और ओमर के बयान में डेल्टा ऑफ़ अथॉरिटी और डिस्क्रेशनरी पावर का अंतर ज़रूरी है... लेकिन मैंने टाइप करते वक्त गलती कर दी, मुझे अभी तक शॉर्टकट्स समझ नहीं आए

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    Vishakha Shelar

    सितंबर 8, 2024 AT 20:01

    ये सब बस चुनाव के लिए नाटक है 😭💔 और मैं रो रही हूँ क्योंकि इतनी बहस हो रही है और कोई नहीं सुन रहा 😭

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    Ayush Sharma

    सितंबर 9, 2024 AT 14:15

    बहुत अच्छा बयान। इस तरह के बयानों को लोग अक्सर राजनीतिक चाल के रूप में देख लेते हैं, लेकिन अगर आप न्याय के इतिहास को देखें, तो ये एक न्यायिक जिम्मेदारी का अभिनय है। जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार को इसमें शामिल करना अनिवार्य था।

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    charan j

    सितंबर 9, 2024 AT 17:10

    फिर भी एक आतंकवादी को बचाने की कोशिश? बस इतना ही

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    Kotni Sachin

    सितंबर 10, 2024 AT 16:52

    मैं इस बयान की बहुत सराहना करता हूँ। ओमर अब्दुल्ला ने एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर बहुत सावधानी से बयान दिया है। न्याय प्रणाली कभी-कभी गलत होती है - और जब एक व्यक्ति की जान जाती है, तो वो वापस नहीं आती। ये सिर्फ़ एक फैसला नहीं, ये एक आत्मा का अंत है। और अगर राज्य की अनुमति नहीं थी, तो ये निर्णय अधिकारिता के बाहर था।

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    Nathan Allano

    सितंबर 12, 2024 AT 16:09

    अगर आप इस मामले को देखें, तो ये सिर्फ़ एक फाँसी का मामला नहीं है - ये एक समाज के न्याय के बारे में सवाल है। हम अक्सर भावनाओं से फैसले लेते हैं, लेकिन न्याय के लिए तर्क चाहिए। ओमर अब्दुल्ला ने एक बहुत ही संतुलित नजरिया रखा है। अगर हम इस बात को भूल गए कि हर आतंकवादी एक व्यक्ति नहीं होता, तो हम भी उसी विचारधारा के शिकार बन जाते हैं।

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    Guru s20

    सितंबर 12, 2024 AT 18:41

    मैं ओमर अब्दुल्ला के बयान से सहमत हूँ। ये एक ऐसा मुद्दा है जिसमें राज्य की भागीदारी ज़रूरी है। न्याय तभी वास्तविक होता है जब वो लोगों के साथ हो, न कि उनके ऊपर से।

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    Raj Kamal

    सितंबर 13, 2024 AT 15:14

    मुझे लगता है कि अगर हम इस मामले को गहराई से देखें तो ये एक बहुत बड़ा न्यायिक और संवैधानिक मुद्दा है जिसमें राज्य की अधिकारिता, राष्ट्रीय सुरक्षा, और मानवाधिकार के बीच एक जटिल संतुलन है जिसे हम अक्सर भूल जाते हैं, और ये बयान उस संतुलन को फिर से उठाता है, और ये बहुत जरूरी है क्योंकि अगर हम न्याय के बारे में भूल जाएं तो हम सिर्फ़ एक अन्य अत्याचारी व्यवस्था बन जाएंगे जो बस भावनाओं से फैसले लेती है और न्याय के बजाय बदला लेने की भावना को बढ़ावा देती है और ये तो बहुत खतरनाक है क्योंकि इससे न्याय का अर्थ ही बदल जाता है और अगर हम इसे नहीं समझेंगे तो हम अपने आप को न्याय के विरुद्ध खड़ा कर लेंगे

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    Rahul Raipurkar

    सितंबर 15, 2024 AT 15:12

    एक अल्ट्रा-रिएक्शनरी स्टेट एक्शन के रूप में ये फाँसी एक न्यायिक निर्णय नहीं, बल्कि एक राजनीतिक अभिनय है। जब एक राज्य अपने नागरिकों को बाहर रखता है, तो उसका न्याय अर्थहीन हो जाता है। ये एक विरासत का न्याय है - जो बस भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है।

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    PK Bhardwaj

    सितंबर 17, 2024 AT 03:54

    अगर राज्य सरकार को इस निर्णय में शामिल नहीं किया गया, तो ये एक असंवैधानिक अधिकार का उपयोग है। न्याय का मतलब है जनता की भागीदारी - और यहाँ वो नहीं थी। ये एक अंतर्राष्ट्रीय मानक के विपरीत है।

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    Soumita Banerjee

    सितंबर 17, 2024 AT 06:39

    ये बस एक चुनावी ट्रिक है... और ओमर अब्दुल्ला अभी तक नहीं जानते कि जम्मू-कश्मीर की असली समस्या क्या है 😒

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    Navneet Raj

    सितंबर 18, 2024 AT 06:38

    इस बयान को देखकर लगता है कि ओमर अब्दुल्ला ने एक बड़ी जिम्मेदारी ली है। न्याय तभी न्याय है जब वो लोगों के साथ हो। ये बयान एक बड़ा संकेत है।

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    Neel Shah

    सितंबर 19, 2024 AT 17:16

    फाँसी = न्याय 🤡 और ओमर अब्दुल्ला बस लोगों को भावुक बनाने की कोशिश कर रहे हैं 💔👑

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    shweta zingade

    सितंबर 20, 2024 AT 06:21

    हम अपने बच्चों को ये नहीं सिखाना चाहते कि एक आदमी को फाँसी देकर हम न्याय करते हैं... ये एक ऐसा न्याय है जो बस डर से चलता है। ओमर अब्दुल्ला ने हिम्मत दिखाई - और ये दिल को छू गया 💪❤️

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    Pooja Nagraj

    सितंबर 22, 2024 AT 03:27

    न्याय का अर्थ निर्णय नहीं, बल्कि अधिकारिता है। जब राज्य को बाहर रखा जाता है, तो न्याय की आत्मा मर जाती है। ये एक राजनीतिक अपराध है - जिसे आज भी न्याय के नाम पर बाँटा जा रहा है।

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    Anuja Kadam

    सितंबर 24, 2024 AT 02:27

    फाँसी तो हुई ही... अब बस बातें कर रहे हो

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    Pradeep Yellumahanti

    सितंबर 24, 2024 AT 21:46

    अफ़ज़ल गुरु की फाँसी एक न्यायिक निर्णय थी, लेकिन अगर जम्मू-कश्मीर की सरकार को शामिल नहीं किया गया, तो ये एक राजनीतिक निर्णय बन गया। हमें न्याय के लिए नहीं, बल्कि शक्ति के लिए फाँसी लटकाने की आदत है।

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    Shalini Thakrar

    सितंबर 25, 2024 AT 11:43

    मुझे लगता है कि ओमर अब्दुल्ला ने एक बहुत ही इंसानी बयान दिया है। न्याय तभी असली होता है जब वो दिल से आए - न कि बस एक फाइल के आधार पर। 💛

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