महान भरतनाट्यम नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति का निधन
प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति का 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया। दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। यामिनी कृष्णमूर्ति भारतीय शास्त्रीय नृत्य की अत्यंत महत्वाकांक्षी और प्रतिष्ठित हस्ती थीं। उनके निधन की खबर से नृत्य समुदाय और उनके समर्थकों में शोक की लहर दौड़ गई है।
भरतनाट्यम नृत्य की महारथी
यामिनी कृष्णमूर्ति ने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा भरतनाट्यम नृत्य की विधि को समर्पित किया। उन्होंने इस कला को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसारित किया। उनकी अद्वितीय नृत्य शैली, सुंदर भाव-भंगिमाएँ और नृत्य की गहराई ने उन्हें भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई।
जीवन और संघर्ष
यामिनी का जन्म 20 दिसम्बर 1940 को मद्रास में हुआ था। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने नृत्य की ओर अपना रुझान जताया और शीघ्र ही वे इस कला में माहिर हो गईं। उनकी यात्रा आसान नहीं थी, उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन के साथ अपने नृत्य कौशल को संवारते हुए तमाम कठिनाइयों का सामना किया। उनका संघर्ष और समर्पण अनगिनत नृत्यांगनाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बना।
योगदान और पुरस्कार
यामिनी कृष्णमूर्ति के योगदान को कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा गया। उन्हें 1968 में 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा, 1977 में उन्हें 'पद्म श्री' और 2001 में 'पद्म भूषण' से भी अलंकृत किया गया। ये सम्मान उनकी नृत्यकला के प्रति अनुकरणीय योगदान को दर्शाते हैं।
प्रशंसकों की प्रतिक्रिया
उनके निधन के पश्चात, पूरे भारत के नृत्य प्रेमियों ने अपने-अपने तरीकों से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। सोशल मीडिया पर उनके नृत्य वीडियो और पुराने साक्षात्कार साझा किए जा रहे हैं। सांस्कृतिक संस्थानों और नृत्य शिक्षकों ने भी इस आकस्मिक नुकसान पर गहरा दुख व्यक्त किया। नृत्य शिक्षिका और यामिनी की शिष्या मीरा शर्मा कहती हैं, 'यामिनी जी का योगदान भारतीय शास्त्रीय नृत्य में अमूल्य है। उनकी कमी को पूरा करना कठिन होगा।'
विशेष धरोहर
यामिनी कृष्णमूर्ति ने न केवल स्वयं उत्कृष्टता हासिल की, बल्कि उन्होंने कई युवा नृत्यांगनाओं और कलाकारों को भी प्रशिक्षित किया। उन्होंने 'कलाकेंद्र' संस्था की स्थापना की, जहाँ उन्होंने अपने ज्ञान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया। उनकी शिष्याएँ आज भी उनकी विधि, शैली और प्रशिक्षण की गवाही देती हैं।
आखिरी समय और व्यक्तिगत जीवन
हालाँकि यामिनी कृष्णमूर्ति अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका योगदान और यादें हमेशा जीवित रहेंगी। उम्र बढ़ने के साथ, उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपनी ऊर्जा और उत्साह को कभी कम नहीं होने दिया। निजी जीवन में वे बहुत ही सरल और विनम्र थीं। उनका परिवार और निकटवर्ती लोग उनके व्यक्तिगत जीवन में भी उनसे गहराई से जुड़े हुए थे।
आने वाली पीढ़ियाँ और यामिनी की शिक्षा
यामिनी कृष्णमूर्ति ने जो धरोहर छोड़ी है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके द्वारा दी गई प्रशिक्षण और शिक्षा अब नई पीढ़ियों के कलाकारों के माध्यम से आगे बढ़ रही है। उनके अनगिनत छात्रों ने आज के नृत्य जगत में अपनी पहचान बनाई है। उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण की अमिट छाप, उनके सभी शिष्यों पर देखी जा सकती है।
आज, यामिनी कृष्णमूर्ति भले ही हमारे बीच शारीरिक रूप से उपस्थित न हों, लेकिन उनकी आत्मा और उनकी कला हमेशा जीवित रहेगी। उनका योगदान भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए उसे दुनिया भर में फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि नृत्य की यह पवित्र कला और भी प्रसारित और विकसित होगी।
द्वारा लिखित सुमेधा चौहान
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