देवी चित्रलेखा: एक किशोरी, जिसने कथा वाचन की दिशा बदल दी
हरियाणा के पलवल जिले की एक छोटी सी बस्ती से जब एक चार साल की बच्ची ने वैदिक मंत्र उच्चारित किए, तो परिवार भी हैरान था। 19 जनवरी 1997 को जन्मी देवी चित्रलेखा आज न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर में Devi Chitralekha नाम से प्रसिद्ध हैं। इतनी कम उम्र में भक्ति का रंग चढ़ना साधारण बात नहीं है। उनकी दादी-किसनादेई और दादा राधाकृष्ण शर्मा उन्हें बचपन से ही धार्मिक आयोजनों में लेकर जाते थे, जिससे धर्म की ओर उनका स्वाभाविक झुकाव बना।
देवी चित्रलेखा जब चार साल की थीं, उनके गुरु श्री श्री गिरधारी बाबा ने उन्हें गौड़ीय वैष्णव मत की दीक्षा दी। यही नहीं, छह साल की उम्र में एक धार्मिक आयोजन के दौरान उन्होंने 30 मिनट तक न सिर्फ भजन सुनाए, बल्कि कथा भी सुनाई, जिससे सभी लोग चौंक उठे। वही पल उनके लिए कहानीकार और प्रवक्ता के सफर की शुरुआत थी। गुरुजी ने असरदार प्रवचन देख, वृंदावन के पास तपोवन में सात दिनी श्रीमद भगवत कथा का आयोजन करवाया। माता-पिता को शक था कि इतनी छोटी बच्ची कैसे लगातार कथा कर पाएगी, लेकिन गुरुजी बेहद आत्मविश्वास से भरे थे—उन्होंने सपना देखा था देवी-देवताओं की ओर से फूलों की वर्षा का। आश्चर्य की बात यह थी कि उस कथा आयोजन में हर दिन 10,000 से ज्यादा लोग जुड़े।
यहां से देवी चित्रलेखा की प्रसिद्धि फैली। ऐसी नन्हीं उम्र में इतनी बड़ी भीड़ को सिर्फ धार्मिक भावनाओं से जोड़ना आसान नहीं होता। लोग उनकी आवाज, शब्दों और भजनों से मंत्रमुग्ध हो गए।
परंपरा से आधुनिकता तक: देश-विदेश में पहचान
आज देवी चित्रलेखा सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन और दुनिया के कई देशों में जाकर कथा कर चुकी हैं। उनके प्रवचनों में सिर्फ धार्मिक बातें नहीं होतीं, वे युवाओं को प्रेरित करने वाली बातें, सामाजिक सेवा, और गौ संरक्षण के महत्व पर भी बोलती हैं। चाहे दिल्ली के बड़े मंच हों या गांवों की छोटी चौपालें, वे हर जगह अपनी साफ, भावुक और लयबद्ध शैली में श्रोताओं की आत्मा तक पहुंच जाती हैं।
26 साल की उम्र में, जहां आम युवा अपनी जिंदगी की शुरूआत करने की सोचते हैं, देवी चित्रलेखा ने शादी न करने का निर्णय लिया और खुद को पूरी तरह भक्ति व समाज सेवा में समर्पित कर दिया है। उनके अभियान में एक खास जगह है—गायों का संरक्षण। वे हमेशा अपने प्रवचनों के जरिए बताते हैं कि प्राचीन संत महापुरुषों की तरह गौ सेवा का महत्व कितना है।
उनका मुख्य जोर रहता है श्रीमद् भगवत कथा पर। वे बताती हैं कि श्रीमद् भगवत केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि इसमें जीवन के हर पहलू को समझाने वाले सूत्र छिपे हैं। साथ ही, गौड़ीय वैष्णव परंपरा के नियम—जैसे चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाएं—को उन्होंने जीवन का मंत्र बना लिया है। युवा हों या वृद्ध, महिलाएं हों या पुरुष—उनके श्रोताओं में कोई भेद नहीं।
- बचपन से ही भजन गाने और कथाएं सुनाने में दक्षता हासिल की
- अभूतपूर्व भीड़ जुटाने की क्षमता
- गौ रक्षा और समाजसेवा में अग्रणी सहभागिता
- युवाओं को धर्म से जोड़ने के लिए आधुनिक माध्यमों का इस्तेमाल
देवी चित्रलेखा ने यह दिखा दिया कि कैसे एक साधारण परिवार की बच्ची केवल भजन-कीर्तन और कथाओं के जरिए लाखों लोगों की सोच को बदल सकती है, साथ ही देश-विदेश में भारतीय आध्यात्म का संदेश पहुंचाने की ताकत रखती है।
द्वारा लिखित सुमेधा चौहान
इनके सभी पोस्ट देखें: सुमेधा चौहान