गुरमीत राम रहीम को 22 साल पुराने हत्या मामले में अदालत ने बरी किया, जाँच में कमियों के कारण मिली राहत

गुरमीत राम रहीम को 22 साल पुराने हत्या मामले में अदालत ने बरी किया, जाँच में कमियों के कारण मिली राहत

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने डेरे सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को 22 साल पुराने एक हत्या के मामले में बरी कर दिया है। अदालत ने इस निर्णय में जाँच में गंभीर कमियों और ठोस सबूतों की कमी का हवाला दिया। राम रहीम वर्तमान में दो अनुयायियों के साथ बलात्कार के मामले में 20 साल की सजा भुगत रहे हैं।

यह मामला पूर्व सेवादार रंजीत सिंह की हत्या से संबंधित है, जिसे 2002 में कथित रूप से मार डाला गया था। आरोप था कि रंजीत सिंह ने एक गुमनाम पत्र के प्रसारण में भूमिका निभाई थी, जिसमें राम रहीम पर डेरे मुख्यालय में महिलाओं के यौन शोषण का आरोप लगाया गया था। अदालत ने जाँच को 'दोषपूर्ण और अस्पष्ट' बताया, जिसमें खास तौर पर हत्या के हथियार, बैलिस्टिक रिपोर्ट, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और पॉलीग्राफ परीक्षण शामिल थे।

मीडिया की चकाचौंध के कारण, इस जांच पर प्रभाव होने का भी मानना था। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से बताया कि कैसे मीडिया के दबाव ने जांच को प्रभावित किया और इसे अधूरी और संदिग्ध बना दिया। इस निर्णय से पूर्व, राम रहीम को 2017 में बलात्कार के दोषसिद्धि के बाद व्यापक हिंसा और तोड़फोड़ का सामना करना पड़ा था, जिसमें पंजाब और हरियाणा में 30 से अधिक मौतें और 250 से अधिक लोग घायल हुए थे।

बरी होने का यह मामला राम रहीम के लिए एक बड़ी राहत है, लेकिन उनके खिलाफ एक और 16 साल पुराना हत्या का मामला अभी भी लंबित है।

राम रहीम के अनुयायी उसकी रिहाई को लेकर उत्साहित हैं, जबकि इस निर्णय ने पीड़ित पक्ष और समाज के एक हिस्से में निराशा पैदा कर दी है। झूठे केस बनाने के आरोपों का सामना करते हुए, अब कानून व्यवस्था की चुनौती बढ़ती दिख रही है।

जांच में प्रमुख कमियाँ

अदालत की टिप्पणी के अनुसार, जाँच में कई महत्वपूर्ण कमियाँ पाई गईं। सबसे पहले, हत्या के हथियार को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं थीं। बैलिस्टिक रिपोर्ट, जो हत्या के हथियार की पुष्टि कर सकती थी, में गंभीर खामियाँ सामने आईं।

दूसरे, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को लेकर भी अदालत ने संदेह व्यक्त किया। इसमें मरने के कारणों को लेकर सूचना अधूरी और अस्पष्ट थी। पॉलीग्राफ परीक्षण के परिणाम भी संदिग्ध पाए गए, जिसने जाँच की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए।

मीडिया का प्रभाव

मीडिया का प्रभाव

कोर्ट ने मीडियाई दबाव का भी विशेष उल्लेख किया। मीडिया ट्रायल और व्यापक रिपोर्टिंग ने जाँच की दिशा को प्रभावित किया। जाँच अधिकारियों पर मीडिया की नजर ने उन्हें स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच करने से रोका।

कोर्ट ने बताया कि इस मामले में जाँच के दौरान जिस तरह से मीडिया ने हस्तक्षेप किया, उसने जाँच के निष्कर्षों को गहरे तरीके से प्रभावित किया। मीडिया के अधिक ध्यान ने जांचकर्ताओं को पर्याप्त समय नहीं दिया, जिसके चलते महत्वपूर्ण सबूतों को नजरअंदाज किया गया।

राम रहीम की बलात्कार दोषसिद्धि

2017 में राम रहीम को बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद, पंजाब और हरियाणा में हिंसा और तोड़फोड़ का व्यापक दौर देखा गया। इस दौरान 30 से अधिक लोग मारे गए और 250 से अधिक घायल हो गए।

राम रहीम के अनुयायियों द्वारा की गई इस हिंसा ने इस क्षेत्र में निरंतर तनाव पैदा किया। पुलिस और सुरक्षा बलों को शांति बहाल करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।

अदालत की टिप्पणी और निष्कर्ष

अदालत की टिप्पणी और निष्कर्ष

अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि जाँच में कई गंभीर खामियाँ थीं। इनमें हत्या के हथियार का अभाव, बैलिस्टिक रिपोर्ट में अनियमितताएँ, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की अपर्याप्तता और पॉलीग्राफ परीक्षण के संदिग्ध परिणाम शामिल थे।

अदालत ने कहा कि इतने गंभीर आरोपों की जाँच में इस तरह की खामियाँ होना न्यायिक प्रक्रिया के लिए चिंताजनक है। इस बरी होने के फैसले के बावजूद, राम रहीम के खिलाफ एक और हत्या का मामला अभी भी लंबित है, जो भविष्य में और भी प्रभाव डाल सकता है।

  • Pooja Joshi

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7 टिप्पणि

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    Harsha kumar Geddada

    मई 31, 2024 AT 07:12

    ये फैसला सिर्फ एक कानूनी बात नहीं, बल्कि एक सामाजिक अंधेरे का पर्दाफाश है। जब जाँच में हथियार का अभाव हो, पोस्टमॉर्टम अधूरा हो, पॉलीग्राफ संदिग्ध हो, तो अदालत का बरी करना ही न्याय है। लेकिन ये न्याय अक्सर सिर्फ तब मिलता है जब तुम्हारे खिलाफ जनता का गुस्सा नहीं होता। राम रहीम के अनुयायी उत्साहित हैं, पीड़ित परिवार टूट गए हैं - ये अंतर ही हमारे न्याय प्रणाली की सच्चाई है। हम तो उसे अपराधी मानते हैं जब वो लोगों के दिलों में डर बिखेरता है, लेकिन जब उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं होता, तो हम उसे बरी कर देते हैं। ये न्याय का नाम है या बस एक शास्त्रीय चाल?

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    sachin gupta

    जून 1, 2024 AT 22:04

    अरे भाई, ये सब तो मीडिया का खेल है। जब राम रहीम के खिलाफ बलात्कार का केस चल रहा था, तो हर टीवी चैनल उसकी तस्वीरें घुमा रहा था। अब जब बरी हो गया, तो वो ही चैनल अब बोल रहे हैं 'जाँच में कमियाँ'। ये न्याय नहीं, ये ट्रेंड है। जब तक हम इस मीडिया फेस्टिवल को नहीं रोकते, तब तक कोई भी जाँच निष्पक्ष नहीं होगी। ये सब एक नाटक है, जिसमें अदालत भी एक अभिनेता बन गई।

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    Shivakumar Kumar

    जून 2, 2024 AT 21:53

    देखो, ये मामला बहुत गहरा है। एक ओर है न्याय की आवश्यकता - बिना सबूत के कोई भी दोषी नहीं हो सकता। दूसरी ओर है जनता का दर्द - जिसे एक व्यक्ति ने उनके जीवन में अंधेरा छाने के लिए नाम बनाया। अदालत ने बिल्कुल सही किया कि जाँच में जो खामियाँ थीं, उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन ये बरी होना क्या उसकी निर्दोषता का सबूत है? या सिर्फ राजनीति और अनुसंधान की नाकामी का नतीजा? मैं तो इस बात पर विश्वास करता हूँ कि न्याय तभी होता है जब दोनों ओर की आवाज़ सुनी जाए - न कि जब एक ओर का शोर दूसरे को दबा दे।

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    saikiran bandari

    जून 4, 2024 AT 14:48
    ये सब बकवास है जाँच में कमी हुई तो बरी कर दिया लेकिन उसने बलात्कार भी किए थे और लोग मारे गए तो फिर ये बरी होना क्या हुआ
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    Rashmi Naik

    जून 5, 2024 AT 12:01

    अदालत के फैसले में टेक्निकल गैप्स के कारण एक एक्टिव फैक्टिविस्ट को बरी कर दिया गया - ये जस्ट एक सिस्टमिक फेल्योर है। जाँच एजेंसीज़ ने फोरेंसिक डेटा नहीं रिकॉर्ड किया, एंटी-स्टेट नैरेटिव के चलते प्रूफ लॉस हुए। और फिर भी ये बरी हो गया? ये न्याय नहीं ये फ्रेमवर्क एक्सप्लॉइटेशन है। अब जब वो दो और केसेस में लंबित है, तो क्या इन्हें भी टेक्निकलिटीज़ से बचा लिया जाएगा? अरे यार, इंसान का दिल तो देखो नहीं, बस डॉक्यूमेंट्स देखो।

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    Vishakha Shelar

    जून 7, 2024 AT 11:10
    मैं रो रही हूँ 😭 ये लोग तो बस अपने गुरु के लिए मर रहे थे और अब ये बरी हो गए... ये दुनिया ही बदल गई है 🤕💔
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    Ayush Sharma

    जून 8, 2024 AT 17:18

    इस फैसले को लेकर जो आवाज़ें उठ रही हैं, वो सभी एक अलग-अलग अंग्रेजी के लिए तैयार हैं। न्याय की नींव तो सबूत पर है - और जब सबूत नहीं हैं, तो अदालत को बरी करना ही अपनी जिम्मेदारी है। लेकिन ये नहीं कि जब कोई अपराधी बरी हो जाए, तो उसका सारा इतिहास धुंधला हो जाए। राम रहीम के खिलाफ दूसरे मामले अभी भी लंबित हैं - और ये बरी होना उनके लिए कोई बचाव नहीं है। न्याय की आवश्यकता है, न कि भावनाओं का शोर।

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