IMD का अलर्ट: पंजाब-हरियाणा में बाढ़, दिल्ली में खतरा बढ़ा, उत्तराखंड-हिमाचल में रेड अलर्ट

IMD का अलर्ट: पंजाब-हरियाणा में बाढ़, दिल्ली में खतरा बढ़ा, उत्तराखंड-हिमाचल में रेड अलर्ट

बारिश का प्रहार: उत्तर में रेड अलर्ट, मैदानों में बाढ़ का खतरा

दिल्ली-एनसीआर ने अगस्त में 265 मिमी बारिश दर्ज की—यह 2001 के बाद सबसे ज्यादा और 1901 के बाद 13वां सबसे ऊंचा रिकॉर्ड है। अब सितंबर में हालात और सख्त हो सकते हैं। मौसम विभाग IMD ने चेतावनी दी है कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बेहद भारी बारिश (21 सेंटीमीटर से अधिक) की आशंका है, जिसके लिए रेड अलर्ट जारी है। इसका असर सिर्फ पहाड़ों तक सीमित नहीं रहेगा; ये नदियां मैदानों में भी उफान ला सकती हैं।

पंजाब और हरियाणा पहले से ही बाढ़ की मार सह रहे हैं—कई इलाकों में खेत पानी में डूबे, सड़कें टूट-फूट का शिकार और गांवों का संपर्क टूटा। इन राज्यों में घग्गर और अन्य नदियां बारिश के हर दौर में अचानक चढ़ाव दिखा रही हैं। लगातार बारिश से जल निकासी प्रणाली पर दबाव बढ़ा है, और जलभराव लंबे समय तक बना रहने का खतरा है।

IMD के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्रा ने साफ कहा है—उत्तराखंड में भारी बारिश भूस्खलन और फ्लैश फ्लड को ट्रिगर कर सकती है। जो नदियां यहां से निकलती हैं, उनका असर नीचे वाले शहरों और कस्बों तक दिखेगा। यानी गंगा-यमुना बेसिन में भी चौकसी जरूरी है। राजधानी दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी यूपी को अगले दौरों में नदी-नालों के उफान, बैराजों से पानी छोड़े जाने और शहरों में जलभराव की डबल मार झेलनी पड़ सकती है।

बारिश का यह पैटर्न यूं ही नहीं बना है। उत्तर-पश्चिम बंगाल की खाड़ी पर एक लो-प्रेशर एरिया बन रहा है, जो संगठित होकर उत्तर और पश्चिम की तरफ नमी धकेलेगा। यही सिस्टम पहाड़ों से टकराकर मूसलाधार बरसात दे सकता है और मैदानों में लंबे स्पेल की बारिश करवा सकता है। उत्तर-पश्चिम भारत में यह तीसरा लगातार महीना है जब बारिश सामान्य से ज्यादा दर्ज हो रही है।

सितंबर 2025 के लिए राष्ट्रीय तस्वीर भी चिंताजनक है। IMD ने अनुमान जारी किया है कि इस महीने बारिश लंबे समय के औसत (LPA) 167.9 मिमी के मुकाबले लगभग 109% तक रह सकती है—मतलब सामान्य से ऊपर। ज्यादा बड़े स्पेल, छोटी-छोटी खिड़कियों में बहुत पानी और उसकी वजह से शहरी बाढ़, भूस्खलन और नदी-नालों के उफान—ये सब साथ-साथ चलेंगे।

दिल्ली की बात करें तो खतरा दो तरफा है। एक, शहर के अंदरूनी हिस्सों में भारी बारिश से अंडरपास, लो-लाइंग कॉलोनियां, और ड्रेनेज पॉइंट्स जलभराव का हॉटस्पॉट बनते हैं। दो, यमुना में ऊपर से छोड़ा गया पानी—विशेषकर ताजेवाला/हथिनीकुंड जैसे बैराज—निचले इलाकों में तेज वृद्धि ला सकते हैं। अगस्त के रिकॉर्ड के बाद आने वाले हफ्तों में राजधानी को लगातार चेतावनियों के लिए तैयार रहना होगा।

पहाड़ी राज्यों के लिए रेड अलर्ट सिर्फ एक रंग नहीं, एक स्पष्ट संकेत है—यात्रा सीमित रखें, चारधाम और अन्य ऊंचाई वाले मार्गों पर गैर-जरूरी मूवमेंट रोकें, और संवेदनशील ढलानों के पास बस्ती वाले इलाकों को फौरन सतर्क किया जाए। अलकनंदा, मंदाकिनी, भागीरथी और टौंस जैसी नदियों में अचानक उफान, स्लोप फेल्योर और पहाड़ी नालों में अचानक बढ़ता बहाव—ये सबसे बड़ा खतरा हैं। सड़कें बंद होने, पुलों पर लोड लिमिट, और बिजली-पानी की आपूर्ति बाधित होने की गुंजाइश हर भारी स्पेल के साथ बनी रहती है।

पूर्व-मध्य भारत में असर अलग तरह से दिखेगा। छत्तीसगढ़ में महानदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में भारी बारिश की संभावना जताई गई है। इसका सीधा मतलब है कि मध्य और निचले हिस्सों—जहां बड़े बांध और बैराज हैं—को शेड्यूल्ड रिलीज और फ्लड मॉनिटरिंग बढ़ानी पड़ेगी। डाउनस्ट्रीम शहरों में नदी किनारे की बस्तियों और तटीय बांधों पर अतिरिक्त दबाव आएगा।

मॉनसून की विदाई भी लेट होती दिख रही है। आमतौर पर जो प्रक्रिया सितंबर के पहले हफ्ते में शुरू होती है, वह इस बार अनुकूल परिस्थितियों के चलते अक्टूबर में खिसक सकती है। जब तक मॉनसून सक्रिय है, अधिकतम तापमान सामान्य से नीचे या सामान्य के आसपास और न्यूनतम तापमान सामान्य से ऊपर रहने का ट्रेंड बना रह सकता है—यानी दिन में ज्यादा गर्मी नहीं पर रातें उमस भरी।

शहरों की तैयारी पर नजर डालें तो चुनौती साफ है—ड्रेनेज सिस्टम की रियल-टाइम सफाई, पंपिंग स्टेशनों की 24x7 तैनाती, अंडरपास और अंडरकवर पार्किंग का अस्थायी बंद, और लो-लाइंग कॉलोनियों के लिए मोबाइल पंप। ट्रैफिक पुलिस के लिए डाइवर्जन प्लान पहले से पब्लिश होना चाहिए। अस्पतालों और स्कूलों में बिजली बैकअप, पीने के पानी का स्टॉक और इमरजेंसी एंट्री-एग्जिट रूट मैप अनिवार्य हैं।

गांवों और कस्बों के लिए प्राथमिकता अलग है—खेतों से पानी की निकासी के अस्थायी रास्ते, कच्चे घरों के किनारे सपोर्टिंग स्ट्रक्चर, राशन और दवाओं का स्टॉक, और पशुओं के लिए सुरक्षित ऊंचे प्लेटफॉर्म। जहां नदियां बार-बार कटान कर रही हैं, वहां एनाउंसमेंट सिस्टम और नाव/ट्रैक्टर जैसे त्वरित निकासी साधन तैयार रखने होंगे।

तैयारी और सलाह: पहाड़ों और शहरों के लिए क्या जरूरी

पहाड़ी क्षेत्रों में जोखिम तेजी से बदलता है। बारिश रुक भी जाए तो ढलान में पानी का रिसाव देर से फिसलन पैदा कर सकता है। ट्रैवल प्लान बेहद कसे हुए रखें—रात में सफर न करें, और अगर मार्ग पर ‘स्लोप इंस्पेक्शन’ या ‘डेब्रिस क्लीयरेंस’ चल रहा हो तो वैकल्पिक रूट लें। स्थानीय प्रशासन के एडवाइजरी और हाई-फ्लो अलर्ट को प्राथमिक स्रोत मानें, सोशल मीडिया फॉरवर्ड नहीं।

  • मौसम चेतावनी दिखे तो पहाड़ी नालों/खड्डों के पास कैंपिंग, फोटोग्राफी या ड्रोन उड़ान न करें।
  • भूस्खलन-प्रवण ढलानों पर पार्किंग से बचें; वाहन हल्के झटकों से भी खिसक सकते हैं।
  • आपदा किट रखें—टॉर्च, पावर बैंक, फर्स्ट-एड, ड्राई फूड, पानी की बोतल, जरूरी दवाएं और पहचान पत्र।
  • पुलिस/SDRF हेल्पलाइन नंबर और स्थानीय कंट्रोल रूम का संपर्क अपने फोन और डायरी, दोनों में सेव रखें।

मैदानों और बड़े शहरों के लिए तस्वीर अलग है। यहां सबसे बड़ी दिक्कत शहरी बाढ़, सीवर बैकफ्लो और अंडरपास में पानी भरना है। बारिश के दौरान कार से जलजमाव में घुसना खतरनाक है—इंजन फेल होने के साथ दरवाजे जाम हो सकते हैं। घरों में मेन स्विच तक पानी पहुंचने का खतरा हो तो तुरंत बिजली कट कर दें और इलेक्ट्रिक चीजों को ड्राई एरिया में शिफ्ट करें।

  • लो-लाइंग कॉलोनियों में कार/बाइक को ऊंची पार्किंग पर शिफ्ट करें; बेसमेंट पार्किंग से बचें।
  • यमुना और संबद्ध ड्रेनों के किनारे रहने वाले परिवार आधिकारिक अलर्ट पर तुरंत प्रतिक्रिया दें; बैराज/बांध से पानी छोड़े जाने की जानकारी नियमित चेक करें।
  • पीने के पानी का 2-3 दिन का स्टॉक, क्लोरीन टैबलेट/फिल्टर और सूखा राशन पहले से रख लें।
  • बच्चों और बुजुर्गों को अनावश्यक बाहर न निकलने दें; बिजली के खंभों और खुले तारों से दूरी रखें।

प्रशासनिक स्तर पर राहत और बचाव बलों—NDRF/SDRF—की तैनाती, जिला कंट्रोल रूम की 24x7 निगरानी, और डैम मैनेजमेंट अथॉरिटीज के साथ वार-रूम समन्वय इस दौर में निर्णायक होंगे। स्कूल-कॉलेजों में लोकल स्तर पर अस्थायी बंद या टाइमिंग में बदलाव तेज़ बारिश के स्पेल के साथ मिलकर तय होंगे। हेल्थ सुविधाओं के लिए मोबाइल मेडिकल यूनिट और एम्बुलेंस की तेज तैनाती जरूरी है, क्योंकि जलभराव मरीजों की आवाजाही रोक देता है।

आखिर ध्यान किस पर रहे? सबसे पहले, उत्तर-पश्चिम बंगाल की खाड़ी पर बने सिस्टम का ट्रैक—यह कितनी तेज़ी से उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ता है, उससे पहाड़ और मैदान दोनों में बारिश की तीव्रता तय होगी। दूसरा, उत्तराखंड-हिमाचल के संवेदनशील जिलों में भूमि-धंसाव और स्लोप फेल्योर की रियल-टाइम रिपोर्टिंग। तीसरा, यमुना-गंगा बेसिन, घग्गर और महानदी कैचमेंट में पानी का स्तर और बैराज रिलीज। चौथा, शहरों में पंपिंग-स्टेशनों का अपटाइम और अंडरपास/ड्रेनों की लाइव स्थिति।

बारिश का पैटर्न तेज है और बदलाव जल्दी-जल्दी हो रहा है। हर अलर्ट का मतलब पैनिक नहीं होता, लेकिन उसे नजरअंदाज करना महंगा पड़ता है। जो क्षेत्र पहले से पानी में डूबे हैं, वहां पुनर्बहाली को भी उसी तेजी से चलाना होगा—टूटी सड़कों का अस्थायी पैचवर्क, स्कूलों/आंगनवाड़ियों का सेफ शिफ्ट, और पीने के पानी की सुरक्षित सप्लाई। जब तक मॉनसून सक्रिय है, चौकसी ही सबसे बड़ा बचाव है।

  • Pooja Joshi

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8 टिप्पणि

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    Vineet Tripathi

    सितंबर 5, 2025 AT 22:33

    ये बारिश तो अब नैचुरल नहीं, बल्कि क्लाइमेट चेंज का सीधा असर लग रहा है। पिछले 3 महीने लगातार रेकॉर्ड तोड़ रहे हैं। अगर अब भी ड्रेनेज और बैराज मैनेजमेंट पर ध्यान नहीं दिया गया, तो अगले साल ये आम बात बन जाएगी।
    हम सिर्फ अलर्ट देख रहे हैं, लेकिन रियल-टाइम एक्शन कहाँ है?

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    Dipak Moryani

    सितंबर 7, 2025 AT 04:46

    IMD का डेटा तो सही है, लेकिन ये सब तो पहले से ज्ञात बातें हैं। असली सवाल ये है कि राज्य सरकारें क्या कर रही हैं? दिल्ली में अंडरपास पर लगा हुआ बोर्ड ‘इंजन बंद करें’ तो 2018 से वही है। क्या ये बोर्ड अब एक डेकोरेशन बन गया है?

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    Subham Dubey

    सितंबर 9, 2025 AT 04:19

    ये सब एक बड़ा ग्लोबल राजनीतिक षड्यंत्र है। जब आप देखें तो ये बारिश बिल्कुल भी प्राकृतिक नहीं है। ये ड्रोन्स और हेक्सागोनल क्लाउड सीडिंग टेक्नोलॉजी से बनाई जा रही है। जो लोग इसे नैचुरल कहते हैं, वो भी उन्हीं के एजेंट हैं।
    चीन और अमेरिका दोनों इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत को अपनी नदियों को नियंत्रित करने के लिए डिफेंस स्टैंडिंग बनानी चाहिए।
    हाइड्रो-वेपन्स के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय समझौता तुरंत किया जाना चाहिए।
    हमारी सरकार अभी तक क्यों चुप है?

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    Rajeev Ramesh

    सितंबर 10, 2025 AT 00:41

    सरकारी निकायों के द्वारा जारी की गई चेतावनियों की वैधता के संदर्भ में, निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखना आवश्यक है: वर्ष 2001 के बाद दिल्ली में अधिकतम वर्षा रिकॉर्ड का उल्लेख, जिसका तुलनात्मक विश्लेषण 1901 के आंकड़ों के साथ किया गया है। इसके अलावा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में रेड अलर्ट के वैधानिक आधार के रूप में IMD के गाइडलाइन्स का उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त, बैराज रिलीज और जलभराव के बीच कार्यकारी संबंधों की व्याख्या करना आवश्यक है।
    प्रशासनिक निर्णयों के लिए विज्ञान पर आधारित दृष्टिकोण का पालन करना अत्यंत आवश्यक है।

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    Vijay Kumar

    सितंबर 10, 2025 AT 18:26

    पानी बह रहा है, लेकिन सोच नहीं बह रही।
    हम बारिश के लिए बाहर निकलते हैं, लेकिन बाढ़ के लिए घर में बैठे रहते हैं।
    तैयारी नहीं, बस बचाव की उम्मीद।

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    Abhishek Rathore

    सितंबर 11, 2025 AT 05:59

    मैं तो सोच रहा था कि अगर हम सिर्फ एक बार भी अपने शहर के ड्रेनेज सिस्टम को रियल-टाइम मॉनिटर करने के लिए एक ऑपन-सोर्स ऐप बना दें, तो क्या होगा?
    कोई भी आदमी अपने इलाके में जलभराव की फोटो अपलोड कर सके, और उसे ऑटोमेटिक अलर्ट जाए।
    हम बस इंतजार कर रहे हैं - लेकिन अगर हम सब मिलकर एक छोटा सा टूल बना दें, तो ये बड़ा बदलाव ला सकता है।
    इसमें टेक्नोलॉजी की जरूरत नहीं, बस इच्छाशक्ति की।

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    Rupesh Sharma

    सितंबर 12, 2025 AT 20:07

    दोस्तों, ये सिर्फ बारिश नहीं है - ये हमारी जिम्मेदारी का टेस्ट है।
    अगर तुम्हारा घर बाढ़ में डूब गया, तो तुम बस रोएंगे या अपने आसपास के लोगों की मदद करोगे?
    कल कोई तुम्हारे लिए गाड़ी लेकर आएगा? नहीं।
    तो आज ही अपने घर के आसपास के ड्रेन खोल दो।
    अपने पड़ोसी को बताओ - राशन कहाँ मिलेगा, दवाएँ कहाँ हैं।
    एक नाव या ट्रैक्टर भी अगर तुम्हारे गाँव में है, तो उसे रजिस्टर कर दो।
    हम सब अकेले नहीं हैं।
    मैं भी अपने इलाके में दो नाव तैयार कर रहा हूँ।
    अगर तुम भी चाहो, तो बताओ - मैं तुम्हें बता दूंगा कि कैसे शुरू करें।
    ये सिर्फ एक अलर्ट नहीं, ये हमारा नया नारा है।
    कोई नहीं आएगा। हम खुद आएंगे।

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    Jaya Bras

    सितंबर 13, 2025 AT 06:15

    अरे भाई, IMD ने रेड अलर्ट दिया तो अब दिल्ली में सब अपने घरों में बैठे हैं और टीवी पर बारिश देख रहे हैं... जबकि पहले से बाढ़ में डूबे गाँवों में बच्चे बीमार हो रहे हैं।
    मुझे लगता है ये लोग अलर्ट के लिए अलर्ट बनाते हैं, ताकि फिर से बजट मिल जाए।
    अगर बारिश इतनी ज्यादा है तो फिर ड्रेनेज की लाइनें क्यों नहीं बनाई गईं? या फिर ये सब बस एक बेहतरीन नाटक है?
    कम से कम बैराज वाले बैंगलोर में बैठे हैं, ना?
    मैं तो अपनी नानी को बचाने के लिए ड्रोन से राशन ड्रॉप करने की बात सोच रही हूँ। 😂

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