सरकारी स्कूल: भारत में मुफ्त शिक्षा की बुनियाद

जब हम सरकारी स्कूल, राज्य या केंद्र सरकार द्वारा चलाए जाने वाले, बिना शुल्क के सभी वर्ग के छात्रों को बुनियादी शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान. Also known as पब्लिक स्कूल, it forms the backbone of India’s literacy drive and reaches remote villages, urban slums and tribal areas.

एक सरकारी स्कूल शिक्षा नीति, देश या राज्य द्वारा तैयार किए गए नियम‑क़ानून जो पाठ्यक्रम, शिक्षक भर्ती, और फंडिंग तय करते हैं के तहत चलता है। इस नीति के तहत डिजिटल लर्निंग, इंटरनेट, कंप्यूटर और मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करके पढ़ाने‑सीखाने की विधि को धीरे‑धीरे अपनाया जा रहा है, जिससे छोटे‑बड़े स्कूल दोनों ही आधुनिक तकनीक के साथ कदम मिला रहे हैं। ये तीन मुख्य तत्व (सरकारी स्कूल, शिक्षा नीति, डिजिटल लर्निंग) आपस में जुड़कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को संभव बनाते हैं।

मुख्य जुड़े हुए संस्थान और कार्यक्रम

सरकारी स्कूलों का प्रबंधन अक्सर राज्य शिक्षा विभाग, राज्य सरकार की वह शाखा जो स्कूलों की नीति, फंडिंग और निरीक्षण देखती है करता है। विभाग की जिम्मेदारी में स्कूल निर्माण, शिक्षक प्रशिक्षण, और शैक्षणिक परिणामों की निगरानी शामिल है। इस विभाग की पहल से ‘अवसर समोवेश’ और ‘उच्चतर माध्यमिक में बढ़ती प्रवेश दर’ जैसे लक्ष्य पूरे होते हैं। साथ ही केंद्र सरकार के राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने सरकारी स्कूलों के लिए कई नई दिशा‑निर्देश पेश किए हैं: बाल विकास एवं पूर्व-प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाना, विज्ञान‑प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं को सुदृढ़ करना, और शारीरिक शिक्षा को मजबूती देना। इन पहलों ने बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर शिक्षण‑शिक्षण की गुणवत्ता तक हर पहलू को प्रभावित किया है। एक अन्य प्रमुख पहल है ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ (PMKVY) जो सरकारी स्कूल के छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देता है। यह योजना छात्रों को रोजगार‑उपयोगी कौशल सिखाकर स्कूल‑बाहर की तैयारियों को भी बढ़ावा देती है। डिजिटल लर्निंग के संदर्भ में, ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान ने सरकारी स्कूलों में स्मार्ट बोर्ड, कंप्यूटर लैब और इंटरनेट कनेक्शन स्थापित करने में मदद की है। इससे छात्रों को दूरस्थ शिक्षण, ऑनलाइन टेस्ट और इंटरैक्टिव सामग्री तक पहुंच मिली है। शिक्षक भर्ती का काम भी सरकारी स्कूलों के विकास में अहम है। राज्य शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित ‘संतोषी उत्तर परीक्षा’ (SRTP) और ‘सहायता स्तर परीक्षा’ (ATET) से योग्य शिक्षक मिलते हैं, जो आधुनिक पद्धतियों से पढ़ाते हैं। इन परीक्षाओं की मानकता यह सुनिश्चित करती है कि शिक्षक ज्ञान‑आधारित एवं नवोन्मेषी हों। गाँव‑गाँव में लागू हो रहे ‘असत्यापन ग्रासरूट स्कूल’ मॉडल में स्थानीय समुदाय को स्कूल संचालन में शामिल किया जाता है। इससे स्कूल की रख‑रखाव, छात्रों की उपस्थिति, और अभिभावक‑शिक्षक संवाद में सुधार आता है। इस मॉडल में पंचायत, स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय व्यापारियों का सहयोग मिलता है, जो शिक्षा को सामाजिक जिम्मेदारी बनाता है। अंत में, सरकारी स्कूलों में ‘समानता और समावेशिता’ को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रावधान हैं। विकलांग विद्यार्थियों के लिए विशेष वर्ग, महिला छात्राओं के लिए सुरक्षा उपाय, और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए मुफ्त पोषण कार्यक्रम (अन्तरराष्ट्रीय भोजन योजना) लागू हैं। ये सभी पहलें सामाजिक असमानता को कम करके शिक्षा को सबके लिए सुलभ बनाती हैं। नीचे आपको हमारे नवीनतम लेख, रिपोर्ट और केस स्टडीज़ मिलेंगे जो सरकारी स्कूलों की वर्तमान स्थिति, नई नीतियों, डिजिटल उपकरणों और सुधार के तरीकों को विस्तार से बताते हैं। इन पोस्टों को पढ़कर आप जान पाएँगे कि कैसे सरकारी स्कूलों में बदलते हुए रुझान आपके या आपके बच्चों की शिक्षा को प्रभावित कर सकते हैं।

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