वीर सावरकर जयंती: मोदी ने श्रद्धांजलि में गिनाए संघर्ष के चार मंत्र—तेज, त्याग, तप, तलवार

वीर सावरकर जयंती: मोदी ने श्रद्धांजलि में गिनाए संघर्ष के चार मंत्र—तेज, त्याग, तप, तलवार

वीर सावरकर: एक प्रेरणास्त्रोत की जयंती पर देश में सम्मान

वीर सावरकर का नाम लेते ही आज़ादी की लड़ाई के वो पथ दिखाई देते हैं, जिन पर चलना किसी के बस की बात नहीं थी। 28 मई, 2024 को उनकी 142वीं जयंती पर देशभर में उन्हें याद करने का सिलसिला साफ दिखाई दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर सावरकर को 'माँ भारती का वीर सपूत' बताते हुए उनके योगदानों को बड़े भावुक अंदाज में रेखांकित किया। मोदी ने अपनी पोस्ट में लिखा कि सावरकर ने विदेशी शासन के सामने जो अनगिनत पीड़ाएँ सही, वो उनके देशप्रेम का उदाहरण तो है ही, आज के भारत निर्माण का रास्ता भी दिखाता है।

प्रधानमंत्री ने कहा, "सावरकर के जीवन में तेज, त्याग, तप और तलवार—ये चारों मंत्र हर पीढ़ी के लिए आदर्श बन सकते हैं। उनका बलिदान आज भी आधुनिक भारत के निर्माण में हमें दिशा देता है।" मोदी की यही बातें सावरकर की तस्वीरों के साथ सोशल मीडिया पर तेजी से शेयर होने लगीं। देश के कई केंद्रीय मंत्रियों जैसे अमित शाह, राजनाथ सिंह और स्मृति ईरानी ने भी सावरकर के दिखाए रास्ते और विजन को लेकर अपनी श्रद्धांजलि दी।

आंदोलन, आत्मबल और तर्क—सावरकर की विरासत का असर

सावरकर न केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि उन्होंने समाज सुधार, जातिवाद के खिलाफ आवाज़, और हिंदुत्व की अपनी विचारधारा के ज़रिए भारतीय राजनीति को नई दिशा दी। उन्होंने युवाओं को संघर्ष के लिए तैयार किया, जेल में रहकर भी क्रांतिकारी विचारों की लौ बुझने नहीं दी। कालापानी में बिताए उनके मुश्किल साल हर पीढ़ी के लिए सबक हैं कि किस तरह हालात चाहे कितने भी बदतर हों, आत्मबल से उन्हें बदला जा सकता है।

उनके 'तेज' का मतलब था—हर अन्याय के खिलाफ उत्साह और जज्बा। 'त्याग' में उन्होंने अपने परिवार, सुख-सुविधा, सब कुछ स्वतंत्रता के नाम पर छोड़ दिया। 'तप' उनकी साधना थी, वर्षों की कैद और यातना के बावजूद सच्चाई के साथ खड़े रहना। 'तलवार' वो शक्ति थी, जिससे वह हमेशा अन्याय को चुनौती देते रहे।

मंत्रीमंडल से लेकर आम नागरिक तक, सभी ने इस मौके पर सावरकर की तस्वीरों और विचारों को साझा किया। कई जगहों पर विचार गोष्ठियों, स्कूलों-कॉलेजों में प्रतियोगिताओं और श्रद्धांजलि समारोहों का आयोजन हुआ। लोगों ने सावरकर को मात्र स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर नहीं, एक दूरदर्शी सुधारक और विचारक के रूप में भी देखा। उनके विचार आजादी के दशक बाद भी बहस में हैं।

  • सावरकर ने '1857 का स्वतंत्रता संग्राम' पहली बार आजादी की पहली क्रांति बताया।
  • उन्होंने जाति और अस्पृश्यता के खिलाफ लिखकर सामाजिक बदलाव की शुरुआत की।
  • उनकी बहादुरी का जिक्र आज स्कूल की किताबों से लेकर टीवी पर चर्चाओं तक दिखता है।

जयंती के दिन मोदी समेत कई नेताओं ने दोहराया, जो पीड़ा—सावरकर ने सही, उसका सामना हर युवा अपने हिस्से की जिम्मेदारियों में कर सकता है। उनके बताई चार बातों—तेज, त्याग, तप, तलवार—का संदर्भ आज भी राष्ट्र निर्माण के हर कदम में दिखता है। जयंती के मौके पर एक बार फिर वीर सावरकर के बहुआयामी और विवादों से घिरे जीवन के सकारात्मक पहलूओं को जनता के सामने रखा गया।

  • Pooja Joshi

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5 टिप्पणि

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    Dipak Moryani

    मई 31, 2025 AT 17:11

    सावरकर के चार मंत्र तो बहुत अच्छे हैं, लेकिन आज के दौर में तेज का मतलब ट्वीट करना नहीं, बल्कि सोचना है। त्याग का मतलब फोन छोड़ना नहीं, बल्कि अहंकार छोड़ना है। तप का मतलब जेल में बैठना नहीं, बल्कि अपने विचारों को बदलने की हिम्मत है। तलवार की जगह आज बुक और ब्लॉग हैं।

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    Subham Dubey

    जून 1, 2025 AT 21:07

    ये सब बातें बस एक धार्मिक चक्रव्यूह है। सावरकर को इतना उठाने का मकसद क्या है? जब उन्होंने अपने आप को ब्रिटिश राज के सामने झुकाया था, तो क्या वो वीर थे? ये सब नेता एक ही नारा दोहरा रहे हैं-क्योंकि वो जानते हैं कि युवा अब इतिहास नहीं, अपने फोन पर ट्रेंड्स देखते हैं।

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    Rajeev Ramesh

    जून 2, 2025 AT 20:58

    मैंने सावरकर की लाइफ के बारे में एक बार एक डॉक्यूमेंट्री देखी थी। उन्होंने अपने बचपन में ही एक लिखित नोट बनाया था-‘मैं मरूंगा, लेकिन भारत जिएगा’। वो नोट अब अहमदाबाद के एक संग्रहालय में है। उसकी एक फोटो भी है, जिसमें उनके हाथ में एक पुरानी किताब है-‘The History of the War of Indian Independence’। वो किताब अभी भी ब्रिटिश लाइब्रेरी में बंद है।

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    Vijay Kumar

    जून 4, 2025 AT 01:32

    तेज नहीं, तर्क। त्याग नहीं, जिम्मेदारी। तप नहीं, धैर्य। तलवार नहीं, आवाज।

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    Abhishek Rathore

    जून 4, 2025 AT 23:08

    सावरकर के बारे में बहुत बातें हो रही हैं, लेकिन क्या हम इतने ज्यादा भावुक हो रहे हैं कि उनकी विवादास्पद बातों को भूल रहे हैं? उन्होंने जो लिखा, उसका एक हिस्सा आज भी बहुत ज्यादा अत्याचारी लगता है। शायद उनका जीवन इतना जटिल है कि उसे एक चार मंत्रों में नहीं बाँधा जा सकता। शायद हमें उन्हें एक इंसान के रूप में देखना चाहिए-न कि एक प्रतीक के रूप में।

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