अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय: अल्पसंख्यक दर्जा संबंधी सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय: अल्पसंख्यक दर्जा संबंधी सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा

सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जा के मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। इस मामले में चार अलग-अलग फैसले दिए गए, जिनमें से मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। यह फैसला 1967 के अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ केस में आये निर्णय को पलटते हुए एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जा का रास्ता साफ करता है। अज़ीज़ बाशा के फैसले में कहा गया था कि एएमयू एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है और इसे संसद के एक अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था न कि मुस्लिम समुदाय द्वारा।

अल्पसंख्यक दर्जे की कानूनी लड़ाई

1967 का अज़ीज़ बाशा फैसला लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। मुस्लिम समुदाय और एएमयू का मानना रहा है कि 1981 के संशोधन के तहत विश्वविद्यालय को मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित घोषित किया गया था, जिससे उसे अल्पसंख्यक दर्जा मिलना चाहिए। हालाँकि, 2005 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया, जिसके चलते मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अब एएमयू को एक अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यदि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया जाता है, तो यह अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, और अन्य पिछड़ी जातियों के लिए लागू आरक्षण नीतियों का पालन करने की आवश्यकता से मुक्त हो सकता है। इससे छात्र संख्या में विविधता पर प्रभाव पड़ सकता है।

अन्य विश्वविद्यालयों पर भी पड़ सकता है प्रभाव

यह फैसला अन्य समान मामलों के लिए भी एक न्यायिक मिसाल स्थापित करता है। इसमें दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय जैसे अन्य संस्थानों के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले भी शामिल हैं, जिसे 2011 में अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया गया था। यह निर्णय इस बात पर जोर देता है कि किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ उसके केंद्रीय या राज्य विधायी अधिनियम से नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित की गई कसौटियों के आधार पर तय किया जाना चाहिए।

छह दशक लंबी विवाद यात्रा का अंत

इस मामले में न्यायालय ने आठ दिनों तक चली बहसों के बाद 1 फरवरी 2024 को निर्णय सुरक्षित रखा था और 8 नवंबर 2024 को इसका ऐलान किया गया। तीन न्यायाधीश-जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता, और सतीश चंद्र शर्मा द्वारा इस पर असहमति व्यक्त की गई। एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा मामला दशकों तक विवादास्पद विषय रहा है, जिसमें विश्वविद्यालय और मुस्लिम समुदाय ने संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत इसे अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता देने की मांग की है।

समाज और शिक्षा में प्रभाव

यह निर्णय न केवल एएमयू के लिए बल्कि देश के विभिन अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए भी बड़ी प्रेरणा साबित हो सकता है। यह केस शिक्षा के क्षेत्र में अल्पसंख्यक अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति है। वहीं, इससे समाज में एक नई दिशा में चर्चाएँ शुरू हो सकती हैं। एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा नीतिगत स्तरों पर भी कई सवाल खड़े करता है कि कैसे और किसके द्वारा संस्थानों की स्वायत्तता सुनिश्चित होती है।

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